Wednesday, January 28, 2009

हमज़ुबां

कहना चाहते हैं ........
परिंदे शाखों से
शाखें आसमां से ........................

एक लय मैं गाती बहती नदियाँ ,
अपने किनारों से ,
झरने पर्वतों से ........................


अपने अपने अर्थहीन शब्दों से भी ,
कभी नितांत मौन में भी ,
कितना सार्थक कह जाते हैं वे ,


''और हम ''''..........

व्यर्थ शब्द आडम्बरों में ,
उलझते उलझाते
समझ नही पते मर्म को ,
सादे से अर्थ को .......


सार्थ शब्दों को पाकर भी,
सतत चौकस ............................
एक आवरण में छुपाये ,
भावों संवेदन को, अपने अंतर्मन को ,



ज़ुबां होकर भी हमज़ुबां नही होते ,
ज़ुबां पाकर भी हमज़ुबां नही पाते..................



जनवरी 27, 2009

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