Wednesday, December 30, 2009

कोरी कल्पनाएँ .........

यूँ देखें आकाश में ....
हवाएं उकेर जाती हैं ....
"कोरी कल्पनाएँ" ......


नील वर्ण गगन की सीमायें ...
करती हैं ....
कभी काली कभी सफ़ेद ...
रुई सी नम....
"कोरी कल्पनाएँ" ...



श्याम ढलते ही ...
रक्तवर्ण को यूँ उतार
कंठ में ...
घुल जाती हैं
आरती में नमाज़ में
कोरी कल्पनाएँ अब नहीं रहती ॥
"कोरी कल्पनाएँ"


देहरी का दीपक लगते ही ...
श्याम वर्ण शुन्य में...
विचारशून्य अंतर्मन में ॥
न जाने कहाँ गुम जाती हैं ...
आज कल से अबूझ ॥
निश्चल ,नितांत ...
"कोरी कल्पनाएँ "


-आकर्ष जोशी

""ये ज़िन्दगी भला कौन है """?

कहते हैं पैमानों की इस भीड़ में ......
तुम भी एक पैमाना हो
वक़्त के गले उतरती
शायद कोई शराब है ज़िन्दगी .......


उल्लास ....उत्सव ...
यातना ,...पीड़ा के ताने बाने
निरंतर बुनते जाते लम्हे ...
उन्ही लम्हों का सार सूत्र .....
शायद कोई एक प्रहर है ज़िन्दगी.......


होटल की चाय ...पडोसी का अखबार...
बसों के धक्के ...यारो संग गप्पे ...
ये लफ्ज़ नहीं छोड़ते साथ .....
इन्ही लफ़्ज़ों से बनी ......
शायद एक छंदमुक्त कविता है ज़िन्दगी .....



व्यर्थ चिंताएं , आडम्बर ...
पैसे ........घर बार ...
छुटती ट्रेने,...
बुद्धू बक्से के सामने कहीं गुम जाते हैं ...
इस भीड़ में घुटती,गुमसुम बैठी ,
शायद कोई सांस है ज़िन्दगी.........


प्यार ,... लड़ाई ...गुस्सा
दोस्ती ...यारी ..मक्कारी ॥
जिंदादिली के धुंधलाते चित्र ॥
सन्डे टू सन्डे ....
इसी सन्डे का चित्रहार ....शायद यही है ज़िन्दगी ......



सफ़र में झाकते ..देखा है
खिड़की से कई दफा ...
रास्तों को ....हंसी झरोखों को ....
नितांत सार्थक लम्हों को ....
झाकनें को मना करती
शायद कोई हमसफ़र है ज़िन्दगी ......



तमाम रास्ते अपनाती
कड़वे मीठे लफ़्ज़ों की सड़क ...
दुविधा ...उलझन ..के
विचारशून्य चौराहे ....
विस्मयाधिबोधक वाक्यों से भरा
कौतुहल है.. जिज्ञासा है ज़िन्दगी


मौत है पूर्ण विराम ....
शायद प्रश्नचिन्ह है ज़िन्दगी ...


मृत्यु है अर्धांगिनी का आँचल ...
शायद प्रेयसी की बाहें है ज़िन्दगी


आकर्ष जोशी
आपका घनिष्ट...