Wednesday, December 30, 2009

कोरी कल्पनाएँ .........

यूँ देखें आकाश में ....
हवाएं उकेर जाती हैं ....
"कोरी कल्पनाएँ" ......


नील वर्ण गगन की सीमायें ...
करती हैं ....
कभी काली कभी सफ़ेद ...
रुई सी नम....
"कोरी कल्पनाएँ" ...



श्याम ढलते ही ...
रक्तवर्ण को यूँ उतार
कंठ में ...
घुल जाती हैं
आरती में नमाज़ में
कोरी कल्पनाएँ अब नहीं रहती ॥
"कोरी कल्पनाएँ"


देहरी का दीपक लगते ही ...
श्याम वर्ण शुन्य में...
विचारशून्य अंतर्मन में ॥
न जाने कहाँ गुम जाती हैं ...
आज कल से अबूझ ॥
निश्चल ,नितांत ...
"कोरी कल्पनाएँ "


-आकर्ष जोशी

2 comments:

Anonymous said...

bahut sundar bhai
kafi acche varnan kara hain tune
char line main bhi jodna chahta isame

"mushkil dagar ki raah hain ye,
do pal ki chah hain
maano to khushi hain ye
na maano to kori kalpnaye hain"

umeed karta hu tujhe pasand aayegi.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

Thank you Aakarsh for your presence on my Hindi Blog.

तुम्हारी
"कोरी कल्पनाओं" की कल्पनाशीलता अच्छी लगी.

- सुलभ