Sunday, January 25, 2009

टीस

जब याद आता है ,
वो दिन ,
जब किस्मत ने ?
या भगवान् ने ?
समय ने ,परिस्थितियों ने ?किसने ....................?
किया खिलवाड़ मेरे साथ,
एक बच्चा पूछ लेता है मन से ?
कहती है टीस उसकी ,
किस किस ने नही ???
ढूंढ़ लो जवाब तुम ख़ुद ,



बचपना छोड़ वोह निकलता है
बिलखते जवाब की ओर,
जब मिलता है उसे जवाब,
बदल जाती है उसकी चोट ,
जख्मों में ,
झर उठता है बचपना सारा आखों में ,

मरहम फ़िर लगाती है संत्वानाएं हमदर्दियाँ ...........
कहता है मन उसका
अब ये घाव नही भरने दूंगा
नही भूलूंगा इतनी आसानी से और अगर कभी जाऊँ भूल
छिड़क दूंगा उनपर नमक ,
इसलिए ...........क्योंकि ......
पनपे मुझमे वह टीस वह दर्द
रो दू के दूँ 'बस बहुत हो चुका ,




इतना कह वोह हो गया कठोर
उसके बाद एक आंसू न टपका
पर हाँ
एक आग उसके अन्दर जल गई
कह उठा वोह ,
''और दिलाओ गुस्सा ''
अब बारी उसकी है
पटकने की परिस्थितियों को
कहने की समय को ''जरा बाद में आना''
खेलने की किस्मत के साथ
शायद इसलिए वोह नही चाहता ,
मिटने देना दर्द को,


बचपन तो अब गया नही आएगा कभी
पर छोड़ गया वोह कहीं सवाल
हुआ था क्या उसके साथ सही ?
क्या भूल उससे हो गई थी ?
टूट जाता है वोह सोचता है जब
कहता है बस अब पूर्ण विराम ......
दे दो अपनी कविता को .................
जंग नही हुई ख़त्म
अभी
मुझे लड़ने जाना है ....................



-आकर्ष जोशी

4 comments:

Udan Tashtari said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.

एक निवेदन: कृप्या वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें तो टिप्पणी देने में सहूलियत होगी.

आपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

कविता भंवर राठी said...

sahi hai aakarsh....
dard/ghav/kathinaiya/pareshaniya....in sab se ladna ho to unhe bhulna nahi chahiye....
very nice....

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

स्वागत है आपका.

- सुलभ, यादों का इंद्रजाल

Anonymous said...

hmmm..very good